गायत्री मंत्र/ Gayatri Mantra

गायत्री मन्त्र 🙏

समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा,,एक स्वर से कही गई है ।। समस्त ऋषि-मुनि ,, मुक्त-कंठ से गायत्री का गुणगान करते हैं
 ।। 
शास्त्रों में गायत्री की महिमा का पवित्र वर्णन मिलते हैं ।। गायत्री मंत्र तीनों देव ब्रह्मा,,विष्णु और महेश का सार है गीता में भगवान ने स्वयं कहा है "गायत्री छन्दसामहम्" 
अर्थात गायत्री मंत्र मैं ही स्वयं हूं ।।।।



गायत्री मंत्र== अर्थ सहित व्याख्या!!


ॐ भूर्भुवः स्व: ,,
तत्सवितुर्वरेण्यं ,,
भर्गो देवस्य धीमहि ,,
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥



ॐ= परब्रह्मा का अभिवाच्य शब्द
भू =भूलोक
भुव: = अंतरिक्ष लोक
स्व:= स्वर्ग लोक
त   = परमात्मा या ब्रह्मा
सवितु = ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता 'बनाने वाला'
वरेण्य = पूजनीय
भर्ग = अज्ञान तथा पाप निवारक
देवस्य = ज्ञान स्वरूप भगवान का
धीमहि: = हम ध्यान करते हैं
धियो = बुद्धि
  यो:=जो
  न= हमें 
प्रचोदयात् =प्रकाशित करें सच्ची राह दिखाएं
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भावार्थ - हम ईस्वर की महिमा का गुणगान करते हैं ।।
जिसने इस संसार को उत्पन्न किया 'बनाया' ।। जो पूजनीय है,,जो ज्ञान का भंडार है ।। जो पापों तथा अज्ञान को दूर करने वाला है।। वह हमें प्रकाश दिखाएं और सत्य की राह पर लेकर जाए ।।
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