ना जाने कौन से गुण पर ,दयानिधि रीझ जाते हैं ।।
"यही हरि भक्त कहते हैं , यहीं सद ग्रंथ गाते हैं"
ना जाने कौन से गुण पर,दयानिधि रीझ जाते हैं
यही हरि भक्त कहते हैं यही सद ग्रंथ गाते हैं ...
नहीं स्वीकार करते हैं , निमंत्रण नृप सुयोधन की ।
विदुर के घर पहुंच कर के, भोग छिलकों का लगाते हैं ॥
ना आए मधुपुरी से गोपियों की दु:ख व्यथा सुनकर ।
ध्रुपदजा की दशा पर , द्वारका से दौड़े आते हैं ॥
ना रोये वन गमन में, श्री पिता की वेदनाओं पर ।
उठाकर गिद्ध को निज गोद में आंसू बहाते हैं ॥
कठिनता से चरण धोकर मिले कुछ "बिंदु" विधि हर को ।
वह चरणोंदक स्वयं केवट के घर जाकर लुटाते हैं ।।
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Jai siya ram ji
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