Photo/image - कृष्णा अर्जुन संवाद |
#कृष्ण अर्जुन संवाद।
"हे माधव!
आपकी ऐसी कौन सी कृति है जिसपर आपको सबसे ज्यादा प्रसन्नता होती है और आपकी ऐसी कौन सी कृति है जिसपर आपको सबसे ज्यादा अफ़सोस होता है?"
अर्जुन ने कृष्ण से बहुत ही जटिल प्रश्न किया।
"मेरी सबसे सुंदर कृति भी मनुष्य है और सबसे बदसूरत कृति भी मनुष्य है।" भगवान ने मुस्कुराते हुए कहा।
"मैं कुछ समझा नहीं प्रभु।" अर्जुन ने दुविधा ज़ाहिर की।
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"हे पार्थ!
जब मैं अपने बनाये मनुष्य में परोपकार,दया,समर्पण,न्याय,संघर्ष और सार्थकता देखता हूँ न तो मुझे सबसे ज्यादा प्रसन्नता होती है और जब मैं अपने बनाये मनुष्य में प्रपंच,पशुता,अन्याय और नीचता देखता हूँ न तो मुझे सबसे ज्यादा कष्ट और अफ़सोस होता है।" भगवान ने बड़ी सहजता से सब कह दिया।
"लेकिन हे मधुसूदन!
जब सब आपने ही रचा है फिर आप मनुष्य पर अफ़सोस क्यों करते हैं,जब प्रत्येक कण आपका ही है तो पाप भी तो आपका ही न हुआ प्रभु?" अर्जुन अब भी सन्तुष्ट नही थे।
"हे अर्जुन
प्रत्येक कण मेरा ही है,मैं ही हर एक कण का निर्माण करता हूँ,पाप का भी निर्माण मैंने ही किया है,क्योंकि इस संसार रूपी बाज़ार का इकलौता मालिक मैं हीं हूँ,मैंने ही इस बाज़ार के संतुलन के लिए हर एक पक्ष का निर्माण किया है किन्तु मैंने मनुष्यों को ये स्वतंत्रता दे रखी है कि आप इस बाज़ार में से क्या चुनें?
स्वतंत्रता का नाजायज़ फ़ायदा उठाने वाला मनुष्य हमेशा से गलत रास्ता ही चुनता है,पाप ही चुनता है और इसीलिए ऐसा मनुष्य सजा का भागी है,अफ़सोस का भागी है।
जिस प्रकार भौतिक बाज़ार में से आप बुरी चीजों को अलग करके अच्छी चीजें चुनते हैं वैसे ही सांसारिक बाज़ार में से बुरी चीजों को बिलग करके अच्छी चीजें चुनना ही श्रेयष्कर है,ऐसे लोग भी हैं जिनपर मुझे सबसे ज्यादा ख़ुशी होती है।" कृष्ण ने मुस्कुराकर अर्जुन के सर पर हाथ फेरा।
"आप धन्य है केशव,आप धन्य हैं।" अर्जुन कृष्ण के आगे नतमस्तक थे।
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