चाहत में क्या दुनिया दारी
इश्क़ में कैसी मजबूरी
लोगों का क्या समझाने दो..2
उनकी अपनी मजबूरी....
चाहत में क्या दुनिया दारी.....
मैने दिल की बात रखीं और
तुमने दुनिया वालो की
मेरी अर्ज़ भी मजबूरी थीं..2
उनका हुक्म भी मजबूरी
चाहत में क्या दुनिया दारी.....
रोक सको तो पहली बारिश
की बूंदों को तुम रोको
कच्ची मिट्टी तो महकेगी..2
है मिट्टी की मजबूरी
चाहत में क्या दुनिया दारी.....
जब तक हंसता गाता मौसम
अपना है सब अपने हैं
वक़्त पड़े तो याद आ जाती हैं..2
मसनूई मज़बूरी
चाहत में क्या दुनिया दारी.....
मुद्दत गुजरी इक वादे पर
आज भी का़एम है मोहसिन
हमने सारी उम्र निबाही..2
अपनी पहली मज़बूरी
चाहत में क्या दुनिया दारी.....
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