गुरु गोविंद दोऊ खड़े
काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने
गोविंद देव बताय...
ऐसी वाणी बोलिए
मन का आपा खोय
औरन को शीतल करें
आपहुं शीतल होय....
बड़ा हुआ तो क्या हुआ
जैसे पेड़ खजूर..
पंथी को छाया नहीं
फल लागे अति दूर....
निंदक नियरे राखिए
ऑंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना..
निर्मल करे सुभाय.....
बुरा जो देखन मैं चला
बुरा न मिलिया कोय
जो मन देखा अपना
मुझसे बुरा ना कोई....
दुःख में सुमिरन सब करें
सुख में करे ना कोय
जो सुख में सुमिरन करे
तो दुःख काहे को होय....
माटी कहे कुम्हार से
तू क्या रोंदे मोहे
एक दिन ऐसा आएगा
मैं रैंदूगी तोहे....
मेरा मुझ में कुछ नहीं
जो कुछ है सो तेरा..
तेरा तुझको सौंपता
क्या लागे है मेरा....
काल करे सो आज कर
आज करे सो अब..
पल में परलय होयेगी
बहुरि करेगा कब....
जाति न पूछो साधु की
पूछ लीजिए ज्ञान
मोल करो तलवार का
पड़ी रहन दो म्यान....
नहाए धोए क्या हुआ
जो मन मैंल न जाए
मीन सदा जल में रहे
धोए बास ना जाए....
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ
पंडित भया न कोय..
ढाई आखर प्रेम का
पढ़े सो पंडित होय...
राम इतना दीजिए
जामे कुटुंब समाऐ
मैं भी भूखा ना रहूं
साधु ना भूखा जाए....
माखी गुड़ में गड़ी रहे
पंख रहे लिपटाए
हाथ मले और सर धुने
लालच बुरी बलाय....
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